जिस्म की जरूरत-12

Discussion in 'Hindi Sex Stories' started by 007, Jan 30, 2018.

  1. 007

    007 Administrator Staff Member

    //krot-group.ru incest "मेरा अच्छा बेटा, तो फ़िर आ जाओ," मैं बैड के ऊपर चढकर घोड़ी बनते हुए, और गाँड़ को ऊपर उँचकाते हुए बोली, "ले लो अपना इनाम, और मार लो अपनी मम्मी की गाँड़।"

    ***

    मैं अपने बेटे विजय के सामने घोड़ी बनकर अपनी गाँड़ को हिलाने लगी। विजय किसी तरह से मेरी मोटी हिलती हुई गाँड़ को देखकर अपने आप पर काबू रखने का प्रयास कर रहा था, उसकी सांसे तेज तेज चल रही थी और दिल जोरों से धड़क रहा था। जब विजय ने पहली बार अपनी मम्मी की आमंत्रित कर रही गोल, मुलायम, भरपूर उभरी हुई दर्षनीय गाँड़ पर हाथ रखकर, दोनों गोलाइयों को पूरा सहलाना शुरू किया तो उसका हाथ काँप उठा।

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    "हे भगवान." विजय सिसकते हुए बोला, वो समझ नहीं पा रहा था कि ये सपना है या हकीकत, क्या वो सचमुच अपनी मम्मी की गाँड़ में अपना लण्ड पेलने वाला है। "आपकी गाँड़ सचमुच बहुत सुन्दर है मम्मी, क्या मस्त उभरी हुई गोलाइयाँ है इसकी आह."

    कंधे के ऊपर से मैं अपने बेटे विजय को मेरे चूतड़ों को प्यार से सहलाते और मसलते हुए देख रही थी। कुछ देर बाद जब मेरे सब्र का इम्तेहान जवाब देने लगा तो मैं बोली, "विजय बेटा, मेरे वहाँ पर थोड़ा तेल लगाकर चिकना कर लेना।"

    विजय ने तभी मेरी गाँड़ के छेद को अपनी जीभ से चाटना शुरू कर दिया। विजय को मेरी सिसकारियाँ बता रही थीं कि उसका ऐसा करना मुझे कितना आनंदित कर रहा था। कुछ देर बाद विजय ने सरसों के तेल की शीशी में से थोड़ा सा तेल मेरी गाँड़ के छेद पर टपका दिया, और फ़िर अंदर तक चिकना करने के लिये एक उंगली तेल में भिगोकर मेरी गाँड़ के छेद के अंदर बाहर करने लगा। मेरी तो मानो जान ही निकल रही थी, मेरा बेटा मेरी गाँड़ को मारने से पहले उसको तेल लगाकर चिकना कर रहा था।

    "हाँ बेटा, मेरी गाँड़ मारने से पहले इसको ऐसे ही चिकना कर लो, आह्ह्ह।"

    जैसे ही विजय ने अपने लोहे जैसे फ़नफ़नाते हुए लण्ड का सुपाड़ा मेरी चिकनी गाँड़ के छेद पर टिकाया तो मैं झड़ने के बेहद करीब पहुंच चुकी थी। विजय धीरे धीरे अपने लण्ड को मेरी गाँड़ में घुसा रहा था ताकि मुझे कम से कम दर्द हो। एक बार जब उसको यकीन हो गया कि मेरी गाँड़ और उसका लण्ड दोनों भरपूर चिकने हो चुके हैं, तो उसने मेरी नजरों की तरफ़ देखा, और फ़िर मेरी गाँड़ की दोनों गोलाईयों को अपने दोनों हाथों से पकड़कर चौड़ा कर फ़ैलाने लगा, जिससे उसके लण्ड को मेरी गाँड़ की बेहतर पहुँच मिल सके।

    "तैयार हो मम्मी?" उसने सिसकते हुए पूछा, "और तेल लगाने की जरूरत तो नहीं है ना?"

    "नहीं बेटा, ठीक है, अब जल्दी से अंदर तक डाल दो, मार लो अपनी मम्मी की गाण्ड़ अपने मूसल से।"

    विजय का दिल जोरों से धड़क रहा था, और उसके लण्ड में उफ़ान आ रहा था, उसने एक गहरी लम्बी साँस ली, और फ़िर अपनी मम्मी की गुलाबी गांड़ के छोटे से छेद में एक जोर का झटका मारा, हम दोनों एक साथ कराह उठे। मेरी गाँड़ के छेद ने खुलने से एक सैकण्ड को विरोध किया और फ़िर विजय के लण्ड के सुपाड़े के सामने हथियार डाल दिये। विजय उत्सुकता से मेरी गाँड़ के छेद की गोलाई को अपने लण्ड के सुपाड़े के गिर्द फ़ैलकर खुलते हुए देख रहा था। उसको अब लण्ड को मेरी गरम गरम गाँड़ के अंदर तक घुसाने में आसानी हो रही थी।

    विजय को विश्वास नहीं हो रहा था, कि मैं अपनी गाँड़ की मसल्स को रिलैक्स करके इतने आराम से उसके लण्ड को अंदर तक ले जाऊँगी।

    "ऊह बेटा, ऐसे ही करते रहो, फ़ाड़ दो अपनी मम्मी की गाँड़" मैं फ़ुसफ़ुसाते हुए बोली। मैं अपनी गाँड़ मरवाते हुए अपनी चूत के दाने को अपनी उँगली से घिस रही थी। "अंदर तक डाल दो अपने लण्ड को, बेटा, पूरा अंदर तक।"

    मेरी बातें सुनकर विजय को मजा आ रहा था। अपनी माँ को इस तरह लण्ड के लिये गिड़गिड़ाते हुए देख कर, वो और ज्यादा उत्तेजित हो रहा था, और फ़िर उसने एक बार फ़िर पूरा लण्ड मेरी गाँड़ में पेल दिया।

    जब विजय के टट्टों की गोलियाँ हर झटके के साथ मेरी पनिया रही चूत से टकराती तो विजय आनम्दित हो उठता और फ़िर और जोरों से अपनी मम्मी की गरम गरम टाईट गाँड़ में जोरों से अपना लण्ड पेलने लगता। मेरी गाँड़ के छेद ने मानो विजय के लण्ड को सब तरफ़ से जकड़ रखा था।

    "आह्ह, मम्मी बहुत मजा आ रहा है," मेरे ऊपर झुकते हुए, विजय मेरी गर्दन को चूमता हुआ वोला, और फ़िर उसने मेरे लटक कर झूलते हुए मम्मों को अपने हाथ से मसलना शुरू कर दिया। "आपकी प्यारी सुंदर टाईट गाँड़ मारने में बहुत मजा आ रहा है, आप बहुत अच्छी हो मम्मी।"

    अपनी गाँड़ में अपने बेटे का लण्ड घुसाये हुए, और अपने मम्मों को उसके हाथों से दबवाते हुए, विजय की गर्म साँसों को अपनी गर्दन पर महसूस करते हुए, मैंने मानो अपने बेटे विजय के सामने समर्पण कर दिया था।

    "ओह, विजय बेटा, तुम भी बहुत अच्छे हो," मैं कराहते हुए बोली, और फ़िर गर्दन घुमाकर अपने गुलाबी मोटे होंठ उसको परोस दिये। और फ़िर हम दोनों एक दूसरे को ताबड़तोड़ चूमने चाटने लगे।

    हम दोनों एक दूसरे की जिस्म की जरूरत को पूरा कर रहे थे, लेकिन ये पहली बार था हब हम दोनों के जिस्म का मिलन हुआ था। मेरी ग़ाँड़ की दीवार अभी भी विजय के लण्ड के साईज के अनुसार अपने आप को ढाल रही थीं, और मैं हर पल और ज्यादा मस्त हुए जा रही थी।

    अपने होंठों को विजय के होंठो से थोड़ा दूर करते हुए मैं फ़ुसफ़ुसाई, "बेटा, चोद दो मुझे, मार लो मेरी गाँड़ को, निकाल दो अपना पानी अपनी मम्मी की गांड़ में।

    "आह्ह, मम्मी आप सबसे अच्छी मम्मी हो," विजय अपने लण्ड को मेरी गाँड़ में जोर से पेलते हुए, गुर्राते हुए बोला।

    मेरे रस भरे होंठों को एक लास्ट बार चूमते हुए, विजय अपने घुटनों पर सीधा हो गया, और फ़िर मेरी गाँड़ के दोनों मोटे चूतड़ों को अपने दोनों हाथों में भर के मसलने लगा। वो अपने लण्ड को मम्मी की गाँड़ के छेद में घुसे हुए होने का दीदार करने लगा, और फ़िर धीरे धीरे अपने लोहे जैसे कड़क लण्ड को अपनी मम्मी की गाँड़ में धीरे धीरे अन्दर बाहर करने लगा। और फ़िर मेरी तेल लगाकर चिकनी हुई गाँड़ में उसके लण्ड के झटके तेज होने लगे। मेरी गाँड़ तो मानो हर झटके के साथ उसके लण्ड को खा जाने को बेकरार हो रही थी।

    "ऊह्ह्ह, बहुत मजा आ रहा है, मेरी गाँड़ में तुम्हारा लण्ड और भी ज्यादा बड़ा और मोटा लग रहा है बेटा," मैं कराहते हुए, और अपनी चूत के दाने को उसके झटके के साथ ताल में ताल मिलाकर सहलाते हुए बोली।

    "तुमको भी मजा आ रहा है ना अपनी मम्मी की गाँड़ मारकर? मुझे तो बहुत मजा आ रहा है, और अन्दर तक डालो बेटा. ऊउह्ह्ह! बेटा, मेरी टाईट गाँड़ में अपना लण्ड घुसाकर मजा आ रहा है ना?"

    "हाँ मम्मी बहुत मजा आ रहा है!" विजय गुर्राते हुए बोला, "इतना मजा तो मुझे कभी नहीं आया, आह., आपकी गाँड़ तो बहुत अच्छी है मम्मी, कितनी गर्म है, कितनी टाईट है ये, ओह्ह मम्मी बहुत अच्छी गाँड़ है आपकी तो ओह्ह.!"

    जिस तरह से मैं विजय के लण्ड के हर झटके के अंदर जाते समय अपनी गाँड़ को लूज और एक बार पूरा अंदर जाने के बाद टाईट कर उसके लण्ड को जकड़ लेती थी, उससे विजय समझ रहा था कि मुझे भी गाँड़ मरवाने में उतना ही मजा आ रहा था जितना उसको मेरी गाँड़ मारने में।

    जिस तरह से एक हाथ से मैं अपनी चूत के बेकरार दाने को घिस रही थी, उसकी वजह से बीच बीच में मेरे पूरे बदन में थोड़ा झड़ने जैसी हल्की सी तरंगें दौड़ जाती। ऐसा लग रहा था कि बस अब मैं पूरी अच्छी तरह झड़ने ही वाली हूँ।

    विजय मुस्कुराते हुए मेरी मोटी मस्त गाँड़ में अपने लण्ड के लम्बे अंदर तक झटके मारे जा रहा था, वो मानो कोई सपना देख रहा था, और उस सपने को देखता रहना चाहता था। उसका अपनी मम्मी की गाँड़ मारने से मन ही नहीं भर रहा था। उसको विश्वास नहीं हो रहा था कि लण्ड चुसवाने से इतना ज्यादा मजा गाँड़ मारने में आता है।

    मेरी गाँड़ की गोलाईयों पर हर झटके के साथ आ रही थप थप की आवाज पूरे कमरे में गूँज रही थी। मेरी हल्के हल्के कराहने की आवाज माहौल को और ज्यादा मादक बना रही थी। विजय को इस तरह हर वर्जना को तोड़ते हुए महुत मजा आ रहा था, वो समाज द्वारा वर्जित अपनी सगी माँ के साथ शारीरिक सम्बंध बनाते हुए उनके वर्जित गाँड़ के छेद में अपना लण्ड अपना लण्ड घुसाकर अंदर बाहर कर रहा था।

    मैंने एक बार फ़िर से पीछे विजय की तरफ़ घूमकर देखत हुए कहा, "और जोर से मारो बेटा, और जोर से. हाँ. ऐसे ही. आह्ह्ह्. अंदर तक घुसा दो बेटा अपना मोटा लण्ड अपनी मम्मी की गाँड़ में.ढंग से मार लो अपनी मम्मी की गाँड़," अपने बेटे के लण्ड को अपनी गाँड़ में घुसवाकर, और उसे पिस्टन की तरह अंदर बाहर करवाते हुए मैं मस्त हुए जा रही थी।

    अपनी मम्मी के मुँह से ऐसी मस्त बातें सुनकर विजय का लोहे जैसा सख्त लण्ड और तेजी से मेरी टाईट गाँड़ के छेद के अंदर बाहर होने लगा, और वो भी झड़ने की कगार पर पहुँच गया था।
     
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