साइबर सेक्स - Ek Kahaani - 30

Discussion in 'Hindi Sex Stories' started by 007, Dec 13, 2017.

  1. 007

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    //krot-group.ru कर उधर देखने लगा.. बाहर एक पुलिस इंस्पेक्टर और एक - दो पुलिस तेजी से साइबर केफे के तरफ ही आ रहे थे. अब पवन के हरकतों में तेजी आ गयी. उसने झट से अपना कंप्यूटर ऑफ किया और काउंटर पर पैसे देकर वह साइबर केफे से बाहर निकल गया. वह बाहर निकल गया उसके बाद कुछ पल ही गुजर गये होंगे जब जल्दी जल्दी पुलिस इंस्पेक्टर और उसके साथी साइबर केफे में घुस गये. साइबर केफे में प्रवेश करते ही इंस्पेक्टर ने एलन किया,

    "नो बडी विल गो आउट ऑफ थे केफे. ऑल ऑफ यू स्टे वेर यू अरे. नो बडी विल मूव."

    -----------------------------------

    अंकिता के केबिन के बगल के रूम में दो कंप्यूटर एक्सपर्ट्स, अंकिता और विभा बड़ी आस लगाए मोबाइल पर बोल रहे इंस्पेक्टर रवि की तरफ देख रहे थे.

    रवि ने मोबाइल अपने कान से हटाया और मायूसी से अंकिता की तरफ देखते हुए कहा,

    "थे बस्टर्ड इस मॅनेज्ड तो एस्केप अगेन."

    अंकिता और विभा ने एक दूसरे की तरफ देखा, उनके खिले हुए चेहरे मायूस हो गये थे.
    अंकिता अपने केबिन में अपने काम में व्यस्त थी. तभी फोन की घंटी बाजी.

    "हेलो.." अंकिता ने फोन उठाया.

    "अंकिता तेरे इस गुड न्यूज फॉर यू.." उधर से इंस्पेक्टर रवि बोल रहे थे.

    "इसे सर.."

    "ब्लॅकमेलर ने संतोष को चोद दिया है.." रवि ने अंकिता को क्शुष्खबरी सुनाई.

    "ओह..थॅंक गोद.ई कॅन'त एक्सप्लेन. ई में सो हॅपी.."

    अंकिता को संतोष के छूटने की खबर जब से मिली थी तब से उसे कुछ भी सूझ नहीं रहा था. उससे कब मिलती हूँ ऐसा उसे हो रहा था. वह ऑफिस का सारा काम वैसा ही चोद कर सीधे एअरपोर्ट की तरफ निकल पड़ी.

    ..उसे पहले बताना कैसा रहेगा.?

    नहीं. उसे सर्प्राइज़ देते है.

    और उसे डायरेक्ट बताने का कोई रास्ता भी तो नहीं.

    ई-मैल थी, लेकिन आज कल अंकिता को ई-मैल, चाटिंग इन सारी चीज़ों से सख्त नफरत और मान में डर सा बैठ गया था. एअरपोर्ट आया वैसे उतार कर उसने ड्राइवर को गाड़ी वापस ले जाने के लिए कह कर वह लग भाग दौड़ते हुए टिकट काउंटर के पास गयी.

    "मुंबई के लिए..अब कोई फ्लाइट है.?" उसने पूछा.

    "वन फ्लाइट इस तेरे. जस्ट रेडी तो ताकि ऑफ.."काउंटर पर बैठे लड़की ने बताया.

    उसने काउंटर से टिकट खरीदा और लग भाग दौड़ते हुए ही वह फ्लाइट की तरफ दौड़ पड़ी. तभी उसका मोबाइल बजा उसने मोबाइल का डिसप्ले देखा. डिसप्ले पर उसके ऑफिस का नंबर था. उसने आगे कुछ ना सोचते हुए ही फोन बंद किया और दौड़ते हुए ही फ्लाइट में जाकर बैठ गयी. सीट पर बैठते ही फिर से उसका मोबाइल बजने लगा. उसने मोबाइल का डिसप्ले देखा. वही ऑफिस का नंबर.ऑफिस का नंबर.. क्या काम होगा.? विभा एक काम भी ठीक से नहीं संभाल सकती.

    उसने फोन बंद किया. लेकिन वह फिर से बजने लगा. विभा कभी ऐसा बार बार फोन नहीं करती.

    कुछ तो जरूरी काम होगा. उसने फोन उठाया और उधर फ्लाइट का लास्ट कॉल हो गया.

    "क्या है विभा.?" वह लगभग चिढ़ कर ही बोली. लेकिन यह क्या? उधर से आने वाला आवाज़ आदमी का था. हाँ संतोष का आवाज़ था.

    "संतोष तुम.." वह एकदम से सीट से उठ कर खड़ी होते हुए बोली, "ऑफिस में तुम कैसे. कब .. और वहाँ क्या कर रहे हो.?" उसे क्या बोला जाए कुछ समझ नहीं आ रहा था.

    वह बोलते हुए जल्दी जल्दी प्लेन के दरवाजे की तरफ जा रही थी.

    "तुम्हें मिलने के लिया आया था."उधर से संतोष का आवाज़ आया.

    वह जब प्लेन के दरवाजे के पास पहुँची तब प्लेन का दरवाजा बंद किया जा रहा था.

    "रुको मुझे उतरना है.."

    "क्यों क्या हुआ.?" अटेंडेंट ने पूछा.

    "ई आम नोट फ़ीलिंग वाले." उसके पास अब पूरी बात समझने का वक्त नहीं था.

    वह दरवाजा बंद करते हुए रुक गया और वह तेजी से चलते हुए प्लेन से उतार गयी.

    वह अटेंडेंट उसकी तरफ आश्चर्य से देख रहा था.

    "इसकी तबीयत ठीक नहीं. फिर वह इतने जल्दी जल्दी और जोश के साथ कैसे उतार रही है.?" उसके मान में आया होगा.

    उसकी टैक्सी लगभग अब उसके घर के पास पहुँच गयी थी. टैक्सी जैसे ही उसके घर तक आकर पहुँची उसके दिल की धड़कने तेज हो रही थी. प्लेन से बाहर निकलते ही वह सीधे एअरपोर्ट के बाहर आ गयी थी और टैक्सी लेकर उसने टैक्सी वाले को सीधे उसके घर ले जाने के लिए कहा था और प्लेन में जब संतोष का फोन आया था तभी उसने उसे अपने घर आने के लिए कहा था. उसे ऑफिस में सीन नहीं चाहिए था. तब तक टैक्सी उसके घर के आहतो में आकर रुकी. उसे पोर्च में ही संतोष उसकी बड़ी अधिरता से राह देखता हुआ दिखाई दिया. उसकी टैक्सी आते ही पोर्च से उतार कर उसके टैक्सी के पास आ गया. उसे भी अब रहा नहीं जा रहा था. टैक्सी का दरवाजा खोलकर सीधे वह उसके बहाओं में घुस गया. ना जाने कितने दीनों से वे एक दूसरे को मिल रहे थे. अंकिता के आखों में आँसू आ गये और वे फिर रुकने का नाम नहीं ले रहे थे.

    "अरे अरे.. यह क्या.?" संतोष उसे थपथपाते हुए बोला.

    "देखो तो..
     
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