Unseen Desi Videos (Tadka Maarke)

Discussion in 'Indian Desi Mms Videos' started by Kurt Wild, Jan 23, 2019.

  1. Kurt Wild

    Kurt Wild Member

    Unseen Desi Videos (Tadka Maarke)

    Presenting my collection of Desi Videos with a tadka! When I see desi videos, I masturbate and I imagine myself fucking. We sometimes imagine ourselves by making a story around the video we're watching. In this MEGA THREAD of mine all you have to do is read the imaginary story that I add to the video. P.S. Titles will be in Hindi and English language.


    नमस्ते दोस्तों!
    आपके सामने प्रस्तुत है मेरा मेगा थ्रेड| एक ऐसा थ्रेड जिसमें आपको सब कुछ मिलेगा| मसालेदार शीर्षक से ले कर तड़के वाली कहानी तक| हम जब भी कोई चुदाई वाली वीडियो देखते हैं तो, वीडियो का शीर्षक पढ़ के कल्पना करने लगते हैं| हमारा दिमाग उस वीडियो के इर्दगिर्द एक कहानी बुन देता है जिसके हीरो/हेरोइन हम ही होते हैं| मैं अपने इस थ्रेड में वही करने जा रहा हूँ| मेरे थ्रेड में आपको वीडियो तो मिलेगी ही साथ ही आपको एक काल्पनिक कहानी मिलेगी जिससे पढ़ के आपको लगेगा की ये सत्य घटना है| परन्तु मेरा विश्वास करें यह कोई असली घटना नहीं परन्तु मेरे दिमाग की उपज है|

    P.S. All videos posted have been collected over different platforms like social media and other sources. I don't claim any ownership of these videos. If you find something offending/in-appropriate kindly let me know so I may delete it!

    इंटरनेट टिप : इंटरनेट एक मायाजाल है| अपनी फोटो/वीडियो इंटरनेट पे डालने से पहले दस बार सोचें!
     
  2. Kurt Wild

    Kurt Wild Member

    Unfaithful Wife : Two Bodies, One Soul
    पत्नी की बेवफाई : दो जिस्म एक जान


    ये कहानी है गुप्ता कॉलोनी राजस्थान की| 38 वर्षीय सुनीता एक आम गृहणी है, जिसकी कोई संतान नहीं है| पति एक कंपनी में मैनेजर है और सुनीता पर ज्यादा ध्यान नहीं देता| सुनीता का भरा-भरा बदन उसे आकर्षक नहीं लगता| दूध सी गोरी सुनीता दिन-रात अपने जिस्म की आग में जलती राहत थी| कभी मूली, कभी गाजर तो कभी खीरा ले-ले कर अपनी चूत की आग शांत करती रहती थी| पर जिस्म की आग इतनी जल्दी शांत कहाँ होती है? दिन प्रतिदिन उसकी ये आग बढ़ती जा रही थी और मूली, गाजर उसकी आग को और बढ़काने लगी थी|


    एक दिन सुनीता अपनी दूसरी मंजिल की बालकनी में बैठी अपनी चूत को उँगलियों से सेहला रही थी की तभी उसकी नज़र सामने के घर पर पड़ी| एक जवान-मुश्टण्डा जो करीब-करीब उसकी हम उम्र था वो भी अपनी दूसरी मंजिल की बालकनी में खड़ा सुनीता की ओर देख के मुस्कुरा रहा था| सुनीता की बालकनी में सामने की ओर कपडे रखे थे जिसकी आड़ में सुनीता अपनी चूत सहला रही थी इसलिए उस आदमी को सुनीता की चूत नज़र नहीं आई| दोनों की नज़रें मिली तो सुनीता की चूत में खुजली और बढ़ गई और उसने अपनी ऊँगली को भगनासे पे रगड़ना शुरू कर दिया| उसकी तेजी से चल रही उँगलियों ने चूड़ियों को खानखाना शुरू कर दिया और सामने खड़े आदमी को समझते देर न लगी की सामने क्या हो रहा है| उसके होठों पर कातिलाना मुस्कान दौड़ गई, जिसे देख सुनीता को होश आया की ये वो क्या कर रही है? वो आदमी अब भी सुनीता को टकटकी बांधे देख रहा था और इधर सुनीता के मन में अजीब विचार पैदा होने लगे|


    उसकी चूत तो चुदने के लिए तैयार थी ... पर मन में उसे ग्लानि होने लगी| उसके चेहरे पर हाव-भाव बदलने लगे जिसे वो आदमी समझ गया और 'ना' में सर हिला कर घर के अंदर चला गया| उसके जाने के बाद सुनीता उसके इस बर्ताव से हैरान रह गई| सुनीता ने जैसा सोचा था हुआ उसका उल्टा! कहाँ तो वो सोच रही थी की अगर ये आदमी उसे चोदने आया तो वो सती -सावित्री बन के अपने को बचाएगी और अपना मान रखेगी और कहाँ ये आदमी खुद उसे 'ना 'बोल के चला गया| सुनीता ने उस शाम को अपनी नौकरानी से उस आदमी के बारे में पूछा तो पता लगा की वो गुप्ता जी के यहाँ नया किरायेदार आया है और एक ज़िम में इंस्ट्रक्टर है| सुनीता ने इस सब को भूल जाना चाहा और रात में पति से चुदाई करवाने की सोची| चूत के बाल साफ़ किये और बिना पैंटी और ब्रा के नाइटी पहनी और पति का इंतजार करने लगी| पर उसका बहनचोद पति शराब में धुत हो कर घर पहुँचा और बिस्तर पर गिरते ही सो गया| सुनीता ये देख के जल-भून गई और उसके दिमाग ने उसके सटी-सावित्री विचार को आग लगा दी और उसने सोच लिया की माँ छुड़ाने गई ऐसी पतिव्रता जिसमें चूत की आग ही ठंडी ना हो| उसने सब कुछ सोच लिया की उसे कल क्या करना है|


    अगली सुबह पतिदेव भारी सर के कारन उठे और जब उनकी नज़र घडी पर गई तो दस बज रहे थे| समय देख के तो उनकी गांड ही फ़ट गई! वो बड़ी जोर से सुनीता पर चीखे पर सुनीता के मन में तो पहले से ही आग लगी थी, सो वो चुप-चाप किचन से नाश्ता ले कर निकली और नाश्ता टेबल पर पटक के छत पर चली गई और अपने पति को ऐसे जताया जैसे वो वहां हो ही ना! पति की जली तो बहुत पर अभी उसके पास लड़ने का समय नहीं था| उसने वही कल वाले कपडे पहने हुए थे, नाश्ता उठाया और मुंह में भर के फटा-फ़ट ऑफिस भाग गया| सुनीता छत पर एक कोने से दूसरे कोने में टहल रही थी और उस आदमी का इंतजार कर रही थी| उसके दिलों-दिमाग पर बस चुदाई हावी थी|बार-बार वो अपनी घडी देख रही थी, क्योंकि आमतौर पर जिमखाने दस-ग्यारह बजे तक बंद हो जाया करते थे| अभी साढ़े दस बज रहे थे पर उस आदमी का कोई अता-पता नहीं था| सुनीता को लगने लगा की उसके हाथ से सुनहरा मौका निकल गया, अगर कल वो अपने सती -सावित्री के व्रत में ना पड़ीं होती तो जर्रूर चुदवा लेती| वो मन ही मन खुद को गाली देने लगी पर आज उसकी किस्मत उस पर मेहरबान थी| सुनीता ने गली में नजरें आखरी बार दौड़ाई तो उसे वो आदमी दूध लेके आता हुआ नज़र आया| उस आदमी को देख सुनीता की बचें खिल गई और उसने उस आदमी के ऊपर आने का इंतजार किया|जैसे ही वो आदमी सीढ़ी चढ़ के अपने घर के दरवाजे के सामने आया और घर का ताला खोलने लगा वैसे ही सुनीता कूदते हुए उस आदमी को इशारे करने लगी| पर वो आदमी अपना ताला खोलने में मशरूफ था! जब ताला खोलके वो अंदर घुसा और दरवाजा बंद करने लगा तब उसकी नज़र उछलती हुई सुनीता पर पड़ी और वो वहीँ ठिठुर के रूक गया| सुनीता ने उसे इशारे से अपने घर आने को कहा| इतना कह कर सुनीता नीचे आकर दरवाजे पर नजरें बिछाये खड़ी हो गई| वो आदमी भी शायद ये समझ चूका था की आज उसे इस गोरी की चूत अवश्य मिल जाएगी इसलिए तुरंत दूध को टेबल पर छोड़ भाग के सुनीता के घर पहुँचा| इससे पहले की वो डोरबेल बजता, सुनीता ने तुरंत दरवाजा खोल दिया और उसे इशारे से चुप-चाप अंदर आने को कहा| वो आदमी अंदर था और उसकी नजरें सिर्फ सुनीता के चेहरे पर गड़ी थीं| सुनीता के भी फाक्ते उड़े हुए थे और वो ये तय नहीं कर पा रही थी की वो क्या कहे? इसलिए वो नजरें नीचे किये हुए खड़ी रही और मन ही मन सोचने लगी की अगर उसने पहल की तो कहीं ये आदमीं उसे रंडी ना समझने लगे| कमरे में सन्नाटा था, अब किसी को तो तो ये सन्नाटा ख़त्म करना था तो उस आदमी ने ही पहल की; "जी आपने मुझे बुलाया?" इसके जवाब में सुनीता अब भी भी सर झुकाये खड़ी रही और कुछ नहीं बोली| वो आदमी समझ चूका था की सुनीता शर्मा रही है और पहल करने से डर रही है| तो उसने अपना परिचय देना शुरू किया; "जी ... मेरा नाम राकेश है और मैं यहाँ एक ज़िम में इंस्ट्रक्टर हूँ... और आपका नाम?" "जी... जी... सुनीता....|" सुनीता ने थर-थर्राते हुए जवाब दिया| "आपने मुझे किसी काम के लिए बुलाया था?" ये सुन के तो सुनीता सन्न रह गई! वो हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी की जवाब में उस आदमी को अपनी परेशानी समझा सके| पर उसका ये काम उसकी किस्मत ने आसान कर दिया| अचानक ही बिजली चली गई और इससे पहले वो इस बारे में कुछ कह या कर सकती, राकेश ने तुरंत ही अपने बाहुपाश में जकड लिया|राकेश की जिस्म की गर्मी का एहसास होते ही सुनीता पिघलने लगी और उसने अपना हाथ पीछे ले जा के राकेश को अपने आगोश से जकड लिया| सुनीता के हाथ अब राकेश की पीठ फिर घूम रहे थे और उसकी माशपेशियों का जायज़ा ले रहे थे| अपने इस बर्ताव से राकेश ने सुनीता को जीत लिया था और अब वो उसके साथ जो चाहे वो कर सकता था| राकेश ने सुनीता से थोड़ा अलग हो के उसके कँप-कँपाते होठों पर अपने होंठ रख दिए और अपनी लम्बी से जीभ को उसके मुंह में धकेल दिया| इस अचानक हुए हमले से सुनीता हैरान थी, क्योंकि उसे इसकी कतई उम्मीद नहीं थी| उसे एक अजीब सा डर लगने लगा की जो आदमी शुरू से इतना जोर उसपर दाल रहा है वो आगे चलके चुदाई में उसकी क्या हालत करेगा? सुनीता अभी इसी उधेड़-बुन में थी और उधर राकेश अपनी जीभ से सुनीता के मुंह की गहराइयाँ नापने में व्यस्त था| सुनीता राकेश से अलग तो होना चाहती थी पर उसका शरीर एक लाश के समान ढीला हो चुका था|

    तभी अचानक दरवाजे पर दस्तक हुई, जिसे सुन के राकेश और सुनीता दोनों की फ़ट गई! दोनों एक दूसरे को सवालिया नजरों से देखने लगे|सुनीता ने खुद को संभाला और राकेश को इशारे से सामने वाले दरवाजे की तरफ जाने का इशारा किया| राकेश दरवाजा खोल के अंदर बाथरूम में चला गया| इधर दरवाजे पर फिर से दस्तक हुई तो सुनीता ने अपनी साँसों पर काबू पाया और दरवाजा खोला| दरवाजे पर उसकी काम करने वाली बाई थी जिसे देख के उसे डर सताने लगा की कहीं बाई ने ये राकेश को यहाँ देख लिया तो सारे मोहल्ले में उसकी बदनामी हो जाएगी| इसलिए उसने दरवाजे पर से ही उसे टरकाने की सोची पर तभी बाई बोली; "मेमसाब, साहब ने कहा था की कल बड़े साहब की बर्सी है तो ठीक से सफाई करके जाना| अब मैं ऐसे चली गई तो साहब बहुत गुस्सा होगा|" ये सुन कर सुनीता को याद आया की कल तो उसके ससुर की बर्सी है| सुनीता के दिमाग में कोई भी तरकीब नहीं आ रही थी की कैसे वो बाई को फुटाय! उसे ये डर था की कहीं बाई बाथरूम गई तो उसे वहाँ राकेश ना दिख जाये! "अरे सुनो ... उम्म्म ... मेरा पेट ख़राब है.... तुम वो ... वहाँ उस कमरे में सफाई कर लो और फिर बैठक में पोछा लगा देना| बस इतना ही काम है|" सुनीता ने डरते-डरते उसे जो दिमाग में आया वो बोल दिया और खुद तेजी से बाथरूम में घुस गई| राकेश अंदर खड़ा सब सुन रहा था और मन में तय कर चूका था की आज वो सुनीता को चोदे बिना नहीं छोड़ने वाला| जैसे ही सुनीता बाथरूम में घुसी, राकेश ने तुरंत दरवाजा बंद कर दिया| सुनीता की नजर जब राकेश पर पड़ी तो वो ठिठक के दिवार के सहारे खड़ी हो गई| राकेश का लंड फनफनाता हुआ उसे ही देख रहा था| राकेश ये भली-भाँती समझ गया था की उसके पास ज्यादा समय नहीं है| उसने जल्दी से आगे बढ़ के सुनीता को अपने गले लगा लिया और उसकी गर्दन को चूमने लगा| राकेश के गर्म चुंबनों से सुनीता गर्म होने लगी और उसके मन से बाई का डर ख़तम होने लगा| राकेश के हाथ फिसलते हुए सुनीता की गांड पर आगये और उसने उसके चूतड़ों को अपनी मुट्ठी में जोर से भींच लिया| एक मीठे से दर्द की लहार सुनीता के जिस्म में दौड़ गई और उसने उचक के अपने हाथों की माल राकेश के गले में डाल दी| राकेश सुनीता से अलग हुआ और सुनीता की साडी खींच के निकाल दी| ये देख सुनीता शर्मा गई और उसने अपने दोनों हाथों से अपने चेहरे को ढक लिया| राकेश नीचे की और झुका और सुनीता के पेटीकोट का नाडा खोलने लगा पर उससे बहुत दिक्कत आ रही थी गाँठ खोलने में| एक मिनट तक तरय करने पर भी जब गाँठ नहीं खुली तो उसने अपने दांत पेटीकोट के नाड़े पर रखे और उसे काट के खोल दिया|

    पेटीकोट तुरंत ही सर-सररा के नीचे जा गिरा और सुनीता की चूत राकेश के मुंह के सामने उजागर हो गई| राकेश उसे चूमने के लिए आगे बढ़ा की तभी बाथरूम के दरवाजे पर दस्तक हुई जिसे सुन सुनीता और राकेश दोनों चौंक पड़े! "मालकिन गैस ख़तम हो गया है| दूसरा वाला लगा दो!" ये सुन के सुनीता के साथ साथ राकेश को भी बहुत गुस्सा आया| "हाँ हाँ ... आ रही हूँ ... रुक जा|" सुनीता ने जब राकेश की ओर देखा तो उसे उसकी आँखों में गुस्सा नजर आया| उसने दबी सी आवाज में 'सॉरी' कहा और सिर्फ अपना पेटीकोट पहन के बाहर गई और सिलिंडर बदल के भाग के बाथरूम के भीतर आ गई| भीतर आते ही राकेश ने उसे दबोच लिया और उसके होठों पर अपने होंठ रख के उसे दिवार से सटा दिया और उसके होंठों को अपने मुंह में भर के चूसने लगा| उसके हाथ सुनीता की छाती पर आ गए और उसके चुचों को दोनों हथेली से मींजने लगा| सुनीता की छाती मीठा-मीठा दर्द होने लगा और वो कसमसाने लगी| तभी बाहर से बाई की फिर से आवाज आई; "मालकिन मैंने अदरक वाली चाय बनाई है, इससे आपका पेट ठीक हो जायेगा|" ये सुन के सुनीता ने अपना सर पीट लिया और इधर राकेश को भी बहुत गुस्सा आने लगा| उसने सोचा की अब चाहे जो होजाये वो सुनीता को जाने नहीं देगा| दरअसल ये कोई नै बात नहीं थी, सुनीता की बाई रोज अपने और उसके लिए चाय बनाया करती थी जिसे पीते हुए दोनों गली-मोहल्ले की गप्पें हाँका करते थे| पर आज की बात कुछ और थी, सुनीता लंड लेने की लिए बेताब थी और इधर उसकी बाई बार बार कब्बाब में हड्डी बन रही थी| सुनीता ने बेमन से फिर से बाहर निकलने की कोशिश की पर राकेश ने उसे छोड़ा नहीं बल्कि उसकी पकड़ उसके बाजुओं पर और सख्त होने लगी| "साली बहुत हो गया तेरा नाटक! पहले चुदने के लिए यहाँ बुलाती है और फिर अपनी नौकरानी के साथ मिल कर मेरे खड़े लंड पर पानी डालने में लगी है| तूझे प्यार से नहीं रगड़ के चोदउंगा|


    ये कह के राकेश ने अपने दाहिने हाथ से सुनीता के ब्लाउज को सामने से पकड़ा और झटके से खींच के उसके ब्लाउज के सारे बटन तोड़ दिए और उसे अपनी छाती से चिपका लिया| उसने दोनों हाथों से सुनीता के पेटीकोट को पकड़ के खींच और वो भी ढीला होक जमीन पर जा गिरा| सुनीता को धक्का दे दिवार से सटा के उसने जल्दी से अपना लंड उसकी चूत में पेल दिया और इससे पहले की सुनीता की मुंह से चीख निकलती अपने होठों को उसके होठों पर रख के दबा दिया| सुनीता की चीख उसके मुंह में ही कैद हो कर रह गई| राकेश का लंड चीरता हुआ सुनीता की चूत में घुसा जिससे सुनीता की चूत में जलन होने लगी| राकेश ने पूरा लंड बाहर निकाला और फिर जड़ तक अंदर एक ही झटके में पेल दिया| अपने साथ हो रही इस बेरहम चुदाई से सुनीता का बुरा हाल था और उसके आँसूं बाह निकले| सुनीता के दर्द से बेखबर राकेश उसे हुम्मच-हुम्मच के चोदता रहा| ५ मिनट की बेरहम चुदाई के बाद उसने सुनीता को पलट दिया और अपनी कोहनी को उसकी कमर पे दबाया और नीचे की तरफ झुका के घोड़ी बना दिया और पीछे से अपना लंड उसकी चूत में पेल दिया| दर्द की तेज लहार ने फिर से सुनीता को चीखने पर मजबूर कर दिया पर तभी राकेश ने पीछे से उसके मुंह पे हाथ रख के उसकी चीख का दम घोंट दिया| राकेश अपना लंड बड़ी बेरहमी से सुनीता की चूत में पेले जा रहा था और सुनीता की चूत में बहुत जोर से जलन होने लगी थी| राकेश ने अपने दोनों हाथों से सुनीता के झूल रहे चुचों को दबोच लिया और बेरहमी से उन्हें उमेठने लगा... दबाने लगा| सुनीता ने जलन के कारन खुद को राकेश से छुड़वाने की बेहद कोशिश की पर राकेश उसे छोड़ने के मूड में नहीं था| उसने अपने जिस्म का पूरा बोझ सुनीता पर डाल दिया और वो पेट के बल बाथरूम के फर्श पे लेट गई और राकेश ने ऊपर से धक्के लगाना जारी रखा| राकेश अब झड़ने के करीब था और उसने एक जोर दार धक्का मार और फिर से अपना पूरा लंड सुनीता की चूत में पेल दिया और सारा माल अंदर गिरा दिया और हाँफता हुआ उसी के ऊपर ढेर होगया| "अंदर सो गई क्या मालकिन ?" बाई की आवाज सुन सुनीता और राकेश की तन्द्रा भंग हुई| सुनीता का दर्द से बुरा हाल था और वो रुआंसी आवाज में बोली... "सुन.... दवाई की दूकान ....से क्रोसिन का एक पत्ता ले कर आ ..."


    "क्या हुआ मालकिन? बुखार है क्या? मैं अंदर आऊं?"


    "नहीं... नहीं.... तू ... जा के दवाई लेके आ| मैं बाहर आ रही हूँ|" ये सुन के बाई तुरंत बाजार के लिए निकली और इधर राकेश अपने कपडे पहनने लगा| जैसे ही बाहर का मैन डोर बंद होने की आवाज आई, राकेश जल्दी से बाहर निकल गया और सुनीता को बाथरूम के फर्श में पड़ा हुआ छोड़ दिया| सुनीता ने लात मार के दरवाजा बंद किया और किसी तरह से शावर चालु किया| शावर की गर्म पानी की धार उसके चूत पे पद के उसे आराम दे रही थी| सुनीता की चूत का बुरा हाल था... उसकी गुलाब से पंखुड़ियां सूज गई थीं और जलन के मारे सुर्ख लाल हो चूँकि थी| नहाने के बाद, खुद को सँभालते हुए सुनीता बाहर आई और तभी उसकी बाई भी दवाई ले के वापस आ गई| सुनीता ने वो दवाई ली और लंडगडाते हुए अपने कमरे में आ कर लेट गई| आज जो भी हुआ उससे सुनीता बहुत डर गई थी और खुद को बहुत कोस रही थी| बेचारी कहाँ अपनी चूत की आग शांत करने चली थी और कहाँ उसकी चूत चुदाई से हो रही जलन में ही जल गई|


    समाप्त!



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  3. Kurt Wild

    Kurt Wild Member

    Din Dahade : Bade Ghar Ki Ladki Ki Dahakti Jawani

    दिन दहाड़े: बड़े घर की लड़की की दहकती जवानी
    रज़िया इमाम साहब की एकलौती बेटी थी जिसे बचपन से पढ़ने का बहुत शौक था| स्कूल में सब उसकी तारीफ करते नहीं थकते थे| सिर्फ उसकी पढ़ाई की ही नहीं बल्कि उसके जिस्म की भी| 18 साल की उम्र में ही उसके बोब्बे 36D के होगये थे| पतली कमर सब पर कहर ढाने लगी थी| रज़िया भी अपने उभरते हुए जिस्म से अनजान न थी और अपने जिस्म को जितना हो सके उतना छुपा के रखती थी| पर छिछोरे लड़के फिर भी उसके जिस्म को ताड़ ही लेते थे| गाँव का स्कूल लड़कियों और लड़कों के लिए अलग होता था| दोपहर बारह बजे तक लड़कियां और उसके बाद शाम 5 बजे तक लड़कों का स्कूल हुआ करता था| इमाम साहब गाँव के बड़े राशूक़ दार आदमी थे और सभी उनकी इज्जत करते थे| गाँव में सबसे आलिशान घर उन्हीं का था| बेगम को मरे 5 साल होने को आये थे पर इम्माम साहब ने रज़िया को कभी उसकी माँ की कमी महसूस नहीं होने दी| अपना मन गाँव की भलाई में लगा के वो सब की मदद किया करते थे| अपनी बेटी से उनकी बस एक ही उम्मीद थी की वो पढ़ाई में गाँव का नाम रोशन करे और सारे जिले में अव्वल आये| रज़िया भी उनकी बात का मान रखती और दिन रात खुद को किताबों में घुसाए रहती| उसकी दोस्त उसे हमेशा छेड़ा करती की तू सारा दिन अपना दिमाग इन किताबों में लगाए रखती है, कभी दुनिया दारी की भी सोच लिया कर? तेरा जिस्म कितना भर गया है, सारे लड़के तेरे बारे में नजाने कैसी-कैसी बातें करते रहते हैं| पर रज़िया ने कभी उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया|

    एक दिन की बात है रज़िया छुट्टी के बाद घर को निकल रही थी की तभी उसकी सहेली ने उसे आवाज दी; "सुन तू चलेगी नदी पर नहाने के लिए? बाकी सभी जा रही हैं|"

    "न...नहीं...." और इतने कह कर रज़िया घर की और तेजी से चल पड़ी|नदी का नाम सुन के उसे वो पुराना हादसा याद आ गया, जिस दिन उसकी इज्जत बाल-बाल बची थी| बात साल भर पहले की थी जब वो एक दिन स्कूल के बाद अपनी सहेलियों के साथ नदी पर नहाने गई थी| नदी पर नहाते हुए सभी सहेलियां आपस में सेक्स से सम्बंधित बातें करने लगी थी| कुछ अपने कपडे उतार के नदी में जाने के लिए तैयार थी तों कुछ अपनी छातियों की एक दूसरे से तुलना कर रही थी| रज़िया इन सभी बातों से झेंप के सर नीचे करके बैठी थी| सभी लड़कियां जानती थी की उनकी छातियों का रज़िया से कोई मेल नहीं है इसलिए कोई भी उससे इस बारे में बात नहीं कर रहा था| तभी वहां रुखसाना आ धमकी और रज़िया के बगल में जा के बैठ गई| "क्यों री... इधर चुप-चाप क्यों बैठी है? दिमाग में गणित के सवाल हल कर रही है क्या?" ये कह कर वो ठहाके मार के हँसने लगी और उसकी हंसी सुन बाकी सब हँस पड़ी|तभी वहां कच्ची और ब्रा पहने रज़िया की दोस्त कुसुम आ गई| "तू बड़ी चहक रही है? लगता है रुखसाना की बुर का भोसड़ा बन गया?" ये सुनके सभी और जोर से हँसने लगे| "अरे तू क्या जाने वो मीठा-मीठा दर्द क्या होता है? अब्दुल का है ही इतना जबरदस्त की अच्छे-अच्छों का भोसड़ा बन जाए|" ये बात उसने रज़िया की ओर देखते हुए कही| वहां मौजूद सभी लड़की लंड तो देख ही चुकी थीं, कुछ छू के देख चुकी थी... तो किसी ने उसे चूमा था पर रुखसाना पहली लड़की थी जिसने अपनी चुदाई करवाई थी| रुखसाना अपनी चुदाई की कहानी सब को सुनाने लगी और सभी लड़कियां उसे घेर के बैठ गई| कुसुम भी शायद खेली-खाई थी सो उससे इसमें ज्यादा रूचि नहीं थी और वो सीधा नदी में कूद पड़ी| थोड़ी देर तो रज़िया बैठी छूट-लंड के कारनामे सुनती रही पर जब उससे ये सब बर्दाश्त नहीं हुआ तो वो उठ के जाने लगी| "क्या हुआ? मज़ा नहीं आया क्या?" रुखसाना ने उसे चिढ़ाते हुए पुछा| रज़िया ने कोई जवाब नहीं दिया और वहां से घर की ओर चल दी और मन ही मन रुखसाना को बहुत गालियाँ दी|

    दोपहर के डेढ़ बज रहे होंगे और नदी से घर आने का रास्ता सूनसान था| रज़िया ने आज सफ़ेद रंग का कुरता, गुलाबी रंग का पजामा और भूरे रंग का दुपट्टा ले रखा था| उसे सजने-संवारने का कोई सहूर नहीं था| कंधे पर बैग टांगें और अपनी छाती से किताब को गले लगा के सर नीचे कर के घर की ओर बढ़ रही थी| रुखसाना की बात सुन के आज उसके मन में लंड देखने की इच्छा पैदा हो चुकी थी| लंड कैसा दीखता होगा? क्या सच में वो काला होता है? ये सूपड़ा क्या होता है? इसके बारे में सोच सोच के उसके गाल लाल होने लगे थे| तभी एक लड़के ने उसका रास्ता रोक लिया| "थम जा!" आवाज सुन के रज़िया ने सर ऊपर उठाया तो उसे सामने संकेत दिखा| संकेत गांव का एकलौता मोटर साइकिल रिपेयर करने वाला था और रज़िया के जिस्म का बहुत बड़ा आशिक था| दिन-रात उसी के नाम की मुट्ठ मारा करता था| पर उसे कभी मौका नहीं मिल पाया की वो रज़िया से बात कर पाए| इसलिए उसने रज़िया के आने-जाने पर नजर बनाये रखी थी| वो कितने बजे स्कूल से निकलती थी यही वो समय था संकेत के लिए जब वो उसके मज़े ले सकता था|

    "क...क्या है?" रज़िया ने लड़खड़ाते हुए संकेत से पूछा|

    संकेत: "कुछ बात करनी थी थारे से| बहुत दिनों से बोलना चाहता था पर कभी मौका ही नहीं मिला|"

    रज़िया: "क्या... क्या बात करनी थी?"

    संकेत: "तू मन्ने घणी पसंद से! तेरे बदन की खसबू मैंने पागल बना देती है|"

    रज़िया: "बकवास मत कर.. ओर मुझे जाने दे|"

    संकेत: अरे मैं तुझ से अपने दिल की बात कर रहा हूँ और तुझे बकवास लग रही है?

    रज़िया उससे नज़रें बचा के बगल से जाने लगी तो संकेत ने उसका रास्ता फिर रोक लिया| रज़िया ने नज़रें ऊपर कर के संकेत को गुस्से से घूरा ताकि वो दर जाये और उसका रास्ता छोड़ दे| पर संकेत कहाँ मानने वाला था| उसने रज़िया का रास्ता नहीं छोड़ा और अपने दाहिने हाथ से उसके बाएं कंधे पर हाथ रख दिया| रज़िया ने गुस्से से उसका हाथ झटक दिया और अपनी आखें और बड़ी करके उसे देखने लगी| "हट जा मेरे रस्ते से, वर्ण मैं चीखूंगी?" रज़िया की बात सुन के संकेत को थोड़ा दर लगा और वो थोड़ा पीछे हट गया| वो समझ गया की जोर जबरदस्ती से ये नहीं मानेगी, इसे तो किसी दूसरी तरह से पटाना होगा|

    संकेत: "अच्छा..अच्छा ... गुस्सा मत हो! मैं बस तेरी थोड़ी मदद चाहता था| देख तू मुझे बहुत पसंद है और मैं दिन रात बस तेरे बारे में सोचता रहता हूँ| दिन तो काम में निकल जाता है पर रात... है ... रात में मेरी जान निकल जाती है|" संकेत ने जानबूझ के द्विअर्थी बात की|

    रज़िया: "मैं कुछ समझी नहीं?"

    पर ये बात रज़िया के सर के ऊपर से गई| संकेत को समझते देर न लगी की रज़िया बहुत भोली-भाली है और वो उसका फायदा उठा सकता है| अब उसने एक मन-गड़ंत कहानी बनानी शुरू कर दी|

    संकेत: "देख मेरा गाँव हरयाण और राजस्थान के बॉर्डर पर है| हमारे गाँव के पानी में एक शाप है, अगर वहां का रहने वाला कहीं बहार देश जा के काम-धंधा करता है तो उसके 'नाग' में खून रुक जाता है|"

    रजिया: नाग? तुम्हारा मतलब है साँप? तुम्हारे घर में साँप है?

    संकेत: "अरे पगली साँप मतलब मेरा लंड" ये कहते हुए संकेत ने अपने लंड की ओर इशारा किया|

    रज़िया बड़ी गौर से नीचे की ओर देखने लगी, पर संकेत का लंड अभी भी पतलून के अंदर कैद था| रज़िया को नीचे देखते हुए संकेत ने जल्दी से उसे अपने साँप के दर्शन करा दिए| उसका काला सा 7 इंची मुरझाया लंड देख के रज़िया के बदन में झुरझुरी दौड़ गई|

    संकेत: "ये देख ... कैसा मुरझा गया है| हमारे गांव में लड़के इस उम्र में दूसरी लड़कियों से इश्क़ करते हैं और वो लड़कियाँ अपने जिस्म की गर्मी से इसे गर्म कर देती हैं और इसमें फिर से खून का संचार होने लगता है| पर यहाँ पर मुझे कोई भी लड़की नहीं अच्छी लगी, सबकी सब गन्दी-गन्दी बातें करती हैं| एक तू है जो भोली-भाली है और तेरी नियत भी अच्छी है| तू अगर इसे थोड़ी गर्मी दे दे तो ये फिर से फनफनाने लगेगा|"

    रज़िया: “मैं... मैं क्या कर सकती हूँ?” संकेत: "तेरी बुर में एक बार ये चला जायेगा तो ये गर्म हो जायेगा|"

    रज़िया: "नहीं.. नहीं... बिलकुल नहीं .... मुझे बहुत दर्द होगा ... रुखसाना कह रही थी की बहुत दर्द होता है| मैं ऐसा नहीं करुँगी... कतई नहीं| हट ... मुझे घर जाने दे!" संकेत की बात सुन का रज़िया बहुत दर गई थी| उसने मन ही मन सोचा की मुझे तो बस लंड देखना था, सो मैंने देख लिया अब इसके आगे मैं कुछ नहीं करुँगी|

    संकेत: "प्लीज...मेरी मदद कर दे| मुझे इसमें बहुत दर्द होता है| रात-ररत भर मैं सो नहीं पाटा| प्लीज....!!!"

    रज़िया: "बोल दिया ना नहीं!"

    संकेत को लगने लगा की ये मुर्गी तो गई हाथ से, तो उसने सोचा जो मिल रहा है वही सही|

    संकेत: "अच्छा ठीक है ... पर एक उपकार तो कर सकती है? मुझे बस अपने मुम्मे दिखा दे और मैं अपने लंड को अपने हाथ से ही गर्म कर लूँगा|"

    रज़िया: "नहीं... "

    संकेत: "देख मैं तेरे आगे हाथ जोड़ता हूँ" तरस खा मेरे ऊपर| क्यों मुझ पर जुल्म करती है? मैं तुझे दुआ दूंगा और तेरे लिए भी ये अच्छी बात है की कोई तुझे याद कर के मुट्ठ मर रहा है| सभी लड़कियाँ ये चाहती हैं!"

    संकेत को गिड़गिड़ाता हुआ देख रज़िया को उस पर तरस आने लगा और साथ ही उसके मन में एक सवाल दौड़ने लगा की ये 'मुट्ठ' क्या होता है?

    रज़िया: "ये मुट्ठ मरना क्या होता है?"

    संकेत: "जब हमें कोई बुर नहीं मिलती तो हम अपने हाथ से ही अपने लंड को गर्मी देते हैं और उसे इस तरह आगे पीछे करते हैं|" ये कहते हुए संकेत ने रज़िया को मुट्ठ मार के दिखाया| रज़िया बड़े गौर से संकेत को मुट्ठ मारता हुआ देख रही थी, संकेत का सूपड़ा देख के उसे समझ आ गया की लंड और सूपड़ा क्या चीज होती है?

    रज़िया: "ठीक है... पर मैं पूरे कपडे नहीं उतरूंगी| ये रास्ता है, कोई आगया तो मेरी बहुत बदनामी होगी|"

    संकेत को गुस्सा तो बहुत आया पर उसके पास कोई और चारा भी नहीं था, सो उसने हाँ में सर हिलाया| रज़िया ने अपना कुरता ऊपर उठाया और संकेत को अपने मुम्मों की एक झलक दिखाई| ब्रा के ऊपर से ही सही पर अपनी आँखों के सामने रज़िया के दूध से गोरे जिस्म को देख के संकेत के साँप ने फ़न उठाना शुरू कर दिया| संकेत ने आगे बढ़ के रज़िया को छूना चाहा तो उसने उसका हाथ झटक दिया| बिचारा संकेत मन मार के रह गया और मन ही मन सोचने लगा की आज जो हो गया सो हो गया अगली बार इस साली को चोदे बिना नहीं छोडूंगा| संकेत को कुछ और सूझा और उसने अपनी जेब में हाथ डालके फ़ोन निकला| उसके हाथ में फ़ोन देखते ही रज़िया समझ गई की वो क्या करना चाहता है?

    रज़िया: "नहीं... फ़ोन अंदर रखो!"

    संकेत: "प्लीज यार! तुम हाथ तक तो लगाने नहीं दे रही कम से कम तुम्हें फ़ोन में देख कर मैं मुट्ठ मार लिया करूँगा! प्लीज!"

    रजिया: "ठीक है... पर मैं अपना मुंह ढकूँगी!"

    इतना कहके रज़िया ने फ़ौरन अपना मुंह दुपट्टे से ढक लिया और फिर से अपना कुरता ऊपर करके संकेत को अपने मुम्मे ब्रा के ऊपर से ही दिखाने लगी| इधर संकेत ने अपने दूसरे हाथ से अपना लंड पकड़ा और तेजी से मुट्ठ मारने लगा| उसे मुठियाता देख रज़िया की नज़र उसके लंड पर जम गई और उसकी छूट में कुलबुलाहट होने लगी| उसका मन किया तो की आगे बढ़ के संकेत के लंड को छू ले पर उसके अंदर अपने पिता के मान-सम्मान की झिझक ने उसे ऐसा करने नहीं दिया| संकेत को इसमें कतई मज़ा नहीं आ रहा था और उसने सोचा की माँ चुदाने गई इसकी, मैं तो आज इसे छोड़ के ही रहूँगा| और उसने अपना लंड हिलना छोड़ा और फ़ोन को जेब में रख के रज़िया की ओर बढ़ा और उसे दबोचना चाहा| उसे अपनी तरफ आता देख रज़िया की सिटी-पिट्टी गुल होगी और उसने अपना कुरता छोड़ दिया और एक-एक कदम कर पीछे की ओर बढ़ने लगी| रज़िया के चेहरे पर दर बुरी तरह हावी हो चूका था ओर वो समझ गई थी की आज तो वो गई! तभी वहाँ साइकल की घंटी सुनाई दी! साईकल पर अरशद था, उसके चाचा का लड़का जिसे देख के संकेत ने नजर बचा के अपनी पतलून की चैन बंद की और आगे बढ़ गया| अरशद को वहाँ देख, रज़िया की जान में जान आई और वो उसी के साथ साईकल में बैठ अपने घर पहुंची और उसने ये फैसला किया की चाहे जो होजाये वो ऐसा कुछ नहीं करेगी जिससे उसके पिता का नाम ख़राब हो|


    समाप्त!

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  4. Kurt Wild

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    Vyabhichari Pati : Apni Biwi Ka Dalla

    व्यभिचारी पति : अपनी पत्नी का दल्ला!

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  5. Kurt Wild

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    रंडी : राजस्थानी ऑटो ड्राइवर ने रंडी को चोदा|

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  6. Kurt Wild

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