जिस्म की जरूरत-14

Discussion in 'Hindi Sex Stories' started by 007, Jan 30, 2018.

  1. 007

    007 Administrator Staff Member

    //krot-group.ru gaand chudai ki kahani मैं विजय की बाहों में मचल रही थी, विजय के लण्ड को अपनी गाँड़ के छेद पर दस्तक देते, और उसकी ऊँगलियों को मेरी चूत में घुसे हुए, उसके लण्ड को अपनी चूत में लेने का ख्याल ही मुझे कई गुना उत्तेजित कर रहा था। "हाँ, बेटा," मैंने हामी में सिर हिलाया और अपनी गाँड़ को थोड़ा पीछे खिसकाते हुए उसके लण्ड पर घिस दिया। "हाँ, बेटा जिस दिन तुम मेहनत कर के इतना पैसा जोड़ लोगे और अपनी टैक्सी खरीद कर ले आओगे, उस दिन मैं तुमको वो इनाम दूँगी जो तुम कभी नहीं भूल पाओगे, तुम को ईनाम में मेरी चूत चोदने को मिलेगी, हाँ बेटा, मैं तुझे बहुत प्यार करती हूँ बेटा।

    ****

    छः महीने बाद जब विजय ने अपनी टैक्सी खरीद कर घर के सामने खड़ी की, तो जब मैंने घर से बाहर निकलकर टैक्सी देखने के बाद जब विजय के चेहरे की तरफ़ देखा, तो हम दोनों के चेहरे पर गर्व, खुशी और वासना की मिश्रित मुस्कान थी।

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    उस दिन सुबह जब विजय टैक्सी खरीदने के लिये घर से जाने वाला था, उस से पहले किचन में मैंने उसके लण्ड को चूस कर उसका पानी निकाला था।

    सड़क पर खड़े होकर मैं जब विजय की नयी टैक्सी को देख रही थी, तो मैं अपने होंठों पर अपनी जीभ फ़िरा रही थी। मुझे अपने आप पर गर्व महसूस हो रहा था कि मैंने किस तरह मैंने विजय को सैक्स के इनामों से प्रेरित कर मेहनत करने को उकसाया था कि वो आज टैक्सी का मालिक बनकर मेरे सामने खड़ा था।

    कहीं मेरे मन में ये डर भी था कि कहीं विजय अब जब ठीक ठाक कमाने लगेगा, उसके बाद शादी कर ले अपनी नयी नवेली दुल्हन की कच्ची कोमल टाईट चूत के सामने मुझे भूल ना जाये, लेकिन फ़िर मैंने अपने आप को समझाया कि पहले विजय को समझा कर पहले गुड़िया की शादी करेंगे और उसके बाद विजय की शादी का नम्बर आयेगा, और उस में अभी काफ़ी समय था।

    वो दिन हमारे लिये किसी त्योहार से कम नहीं था, और मैं उस दिन को विजय के लिये यादगार बनाने वाली थी। नारियल फ़ोड़ कर और मंदिर में गाड़ी की पूजा करवा कर जब हम दोनों वापस घर लौटे तो मेरी चूत बुरी तरह पनिया कर चुदने को उतावली हुए जा रही थी। मैंने विजय को एक नयी माला देते हुए उसके पापा की तस्वीर पर टँगी माला को बदलने के लिये कहा। विजय के पापा की मुस्कुराती हुई फ़ोटो मानो हम माँ बेटे के शारीरिक सम्बंधों को स्वीकृति प्रदान कर रही थी।

    उस रात भी खाना खाने के बाद जब हम दोनों बिस्तर पर लेटे तो विजय का लण्ड मेरी गाँड़ की गोलाईयों के बीच दस्तक देने लगा। विजय का एक हाथ मेरे मम्मों को सहला और दबा रहा था, और वो मेरी गर्दन के पिछले हिस्से को चूम और चाट रहा था। बिना कोई समय गँवाये विजय ने मेरी पेटीकोट को ऊपर कर दिया और मेरी फ़ूली हुई चूत को ऊपर से सहलाने लगा। मेरी चूत के दाने के ऊपर वो गोल गोल ऊँगली घुमा रहा था, और चूत की फ़ाँकों को सहलाये जा रहा था। उस दिन मैं इस कदर चुदासी हो रही थी, कि विजय के कुछ देर इस तरह मेरी चूत को सहलाने से ही मैं एक बार झड़ गयी।

    विजय अभी भी मेरी गर्दन को पीछे से चूम रहा था, और उसका फ़नफ़नाता हुआ लण्ड मेरी गाँड़ पर टक्कर मार रहा था। उसके लण्ड से निकल रहा चिकना पानी मेरी गाँड़ के छेद को चिकना कर रहा था। मेरे मुँह से खुशी और उत्तेजना में सिसकारियाँ निकल रही थी। अपने बेटे के लण्ड के सुपाड़े को अपनी गाँड़ के छेद पर अंदर घुसने के लिये बेताब होता देख मुझे बहुत अच्छा लग रहा था। जैसे ही उसने अपने लण्ड का सुपाड़ा मेरी गाँड़ के अंदर घुसाया, मेरे मुँह से आह निकल गयी। अपने बेटे के मोटे लण्ड को अपनी गाँड़ के छोटे से छेद में घुसवाने में थोड़ा दर्द होना लाजमी था। हाँलांकि मैं विजय के लण्ड से पिछले कुछ दिनों में कई बार अपनी गाँड़ मरवा चुकी थी, लेकिन हर बार जब पहली दफ़ा जब विजय अपने लण्ड मेरी गाँड़ में घुसाता था, तो मुझे अलग ही मजा आता था। विजय का मोटा लण्ड मेरी गाँड़ के छोटे से छेद को चौड़ा कर के उसका मुहाना खोल के बड़ा कर देता था। और ऐसा होता देख मुझे सम्पूर्णता का एहसास होता था, और मेरे पूरे गदराये बदन में खुशी की लहर सी दौड़ जाती थी।

    हमेशा की तरह मेरी गाँड़ मारते हुए विजय ने छोटे छोटे धीमे धीमे झटके मारने शुरू कर दिये, और धीरे धीरे हर झटके के साथ उसका लण्ड इन्च दर इन्च मेरी गाँड़ में घुसता जा रहा था। जब उसका लण्ड पूरा मेरी गाँड़ में घुस गया तो उसने कस कर मुझे दबोच लिया, और मेरे मम्मों को अपनी हथेली में भरकर कस कर मसलते हुए अपना लण्ड मेरी गाँड़ में पेलने लगा। खुशी के मारे मेरे मुँह से सिसकारीयाँ निकल रही थी, और मैं मचल रही थी। जैसे ही विजय का लण्ड बाहर निकलता मुझे खालीपन मेहसूस होता और मैं विजय के मोटे लण्ड को फ़िर से अंदर लेने को बेताब होकर मचल उठती। मैंने विजय के लण्ड को अपनी गाँड़ में दबोच रखा था, और गाँड़ के छेद को बंद करते हुए विजय को टाईट गाँड़ का पूरा मजा दे रही थी।

    और जब विजय अपने लण्ड से वीर्य का पानी मेरी गाँड़ में निकाल कर फ़ारिग हुआ, तब तक अपनी चूत में उंगली घुसाकर और चूत के दाने को अपने हाथ की उंगली से सहलाते हुए मैं दो बार झड़ चुकी थी। जैसे ही विजय ने मेरी गाँड़ में अपने लण्ड का आखिरी झटका मारा, मेरे मुँह से खुशी के मारे चीख निकल गयी। विजय के लण्ड से निकले पानी ने मेरी गाँड़ के छेद में मानो बाढ ला दी थी। विजय का मोटा मूसल जैसा लण्ड झड़ते हुए मेरी गाँड़ में और ज्यादा कड़क और मोटा हो जाता था, और उसको अपनी गाँड़ में कड़क होता मेहसूस करते हुए मुझे बहुत मजा आता था, और मेरा भी उसके साथ झड़ने का मजा दोगुना हो जाता था।

    वासना का तूफ़ान शांत होने के बाद, मैंने अपना सिर घुमाकर विजय के होंठो को चूम लिया। विजय का लण्ड अभी भी मेरी गाँड़ में घुसा हुआ था। विजय अभी भी अपने मुलायम नरम हो चुके लण्ड के हल्के हल्के झटके मार कर मेरी गाँड़ में मानो अपने वीर्य के बीज को रोपने का प्रयास कर रहा था।
     
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